Saturday, May 23, 2009

जब दूल्हा रो पड़ा....
दूल्हे राजा जब सजधज कर बारात संग चलते हैं तो सभी लोग दुल्हन लाने के धुन में मगन रहते हैं। लेकिन कल्पना किजीए कि जब कोई दूल्हा बीच रास्ते में हीं रो पड़े और बाराती मुंह देखते रह जाए। कुछ ऐसा हीं होता है आए दिन यहां सबके साथ।
( दूल्हे राजा आएंगे सहेली को ले जाएंगे, दिल तो हमारा भी डोलेगा जब डोली लेके आएंगे....)
जी हां यह कोरी कलपना नहीं बेगूसराय के सिमरिया घाट राजेन्द्र पुल का सच है। खगड़िया जिला के महेशखूंट निवासी विजय प्रकाश बारात संग अपनी दुल्हन लाने पटना जा रहे हैं। देखिए इनकी सफारी बिल्कुल दुल्हन की तरह सजाई गई है। लेकिन दूल्हे मियां को क्या पता था कि दुल्हन के दरवाजे पर फूलों से सजी गाड़ी से नहीं पैदल पहुंचेंगे। सबसे ताज्जुब कि बात तो यह है कि पटना पहुंचने के लिए बारात 12 बजे दिन में हीं घर से चले लेकिन 2 बजे दिन में बीहट एन.एच.-28 पर जाम में गाड़ी ऐसी फंसी की रात के 10 बजे तक सिमरिया नहीं पार कर सकी।
पैदल चल रहे इस दूल्हे राजा को देखिए। ये खुशी के मौके पर रोते हुए जा रहे हैं। मामला ये है कि रास्ता कई घंटों से जाम है। कदम जमीन पर जैसे हीं रखा वन-डे-किंग यानि दूल्हे राजा ने उसका धैर्य जवाब दे गया। और उसकी आंखों में आंसू का सैलाब चल पड़ा। रो पड़ा बेचारा कि मेरे नसीब में क्या लिखा है। बेचारा 3 किलोमीटर पैदल चलकर किसी तरह स्टेशन से गाड़ी पकड़कर जाना पड़ा। आपको बताते चलें कि यह समस्या कोई एक दिन से नहीं है। बल्कि पिछले दो माह से बनी है। पुल रिपेयर हो रहा है। लेकिन एकतरफा परिचालन की तरफ प्रशासनिक लापरवाही के कारण रोज-ब-रोज दर्जनों बारात दूसरे दिन हीं अपनी मंजील तक पहुंच पाती है।
ये तो हुई दूल्हे राजा की बात जो किसी तरह तो अपनी मंजिल तक पहुंच गए। लेकिन उन मरीजों के बारे में सोचिए जो अपने मंजिल तक पहुंचने से पहले हीं राहों में दम तोड़ देते हैं।


अब भी फरार
( 48 अपराधी सलाखों के पीछे, 33 लाख इनाम )
जहां कभी बिहार अपराधियों का सेफ्टी जोन माना जाता था। दिन दहाड़े अपराधी निर्भिक होकर देते थे अपराध को अंजाम। वहीं नीतीश सरकार के प्रशासनिक नकेल कसने से अपराधियों का मनोबल गिरा है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं।
हम आपको बता दें की वर्ष 2006 में जब नीतीश सरकार बनी तो सरकार की पहली प्राथमिकता बिहार को अपराध मुक्त बनाना था। इसी कड़ी में वर्ष 2006 से अब तक 48 इनामी अपराधी सलाखों के पीछे किए जा चुके हैं। जबकि 11 कुख्यात अपराधियों ने आत्म समर्पण कर दिया।
सारे अपराधियों पर 33 लाख इनाम घोषित था। इनामी को दबोचने का सारा श्रेय स्पेशल टास्क फोर्स को जाता है। युद्ध स्तर पर शुरु हुए इस अभियान को पहली सफलता 27 जनवरी 2006 को मिली थी। अब तक 41 माह में 48 इनामी धराए हैं। पांच की गैंगवार या संदिग्ध परिस्थितियों में जहां मौत हो गई है। वहीं 50 से अधिक अभी भी फरार हैं। इस अभियान में सबसे बड़ी बात तो यह है कि कई माओवादियों को भी गिरफ्तार किया गया है।
अपराधियों पर कसते नकेल से सूबे में अपराध का ग्राफ जहां नीचे गया है। वहीं पूरी तरह से इसका खात्मा टास्क फोर्स के लिए अब भी बड़ी चुनौती बनी है।



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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....