मेडिकल कालेजों की मान्यता पर सवाल
बिहार में मेडिकल कालेजों की दुर्दषा किसी से छुपी नहीं है। कहीं षिक्षक कमी है तो कहीं बिल्डिंग ही नहीं है।यह बात एक बार फिर उजागर किया हैै बिहार दौरे पर आई मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया की जांच टीम ने।
जर्जर भवन ....क्लासरूम की कमी .... टूटा फूटा लैब ..... और षिक्षकों का टोटा...... जी हां ! बिहार के मेेडिकल कालेजों की सच्चाई यही है। बिहार दौरे पर आई मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया की जांच टीम ने इस बात का खुलासा किया है। ऐसे में प्रदेष के मेडिकल कालेजों के लिए मान्यता बरकरार रख पाना मुष्किल हो रहा है।
दरअसल सूबे के ज्यादातर मेडिकल कालेजों में पढाई के लिये उचित माहौल ही नहीं है। खास्ताहाल भवनों में बिना इंस्ट्रूमेंट के प्रैक्टिकल क्लास चलते हैं। ज्यादातर कालेजों में षिक्षकों की बेहद कमी है। एम सी आई की जांच टीम के सात दिवसीय प्रदेष दौरे में ये तमाम खामिया निकल कर सामने आईं हैं।
सूबे के छह में से चार कार्यरत और तीन नये बने मेडिकल कालेजों के निरीक्षण में बिहार सरकार के दावों की पोल भी खुल गई। हालांकि इससे पहले भी जांच टीम आई थी लेकिन पहले जैसे तैसे सरकार मैनेज करके अच्छी तस्वीर पेष कर देती थी, लेकिन इसबार जांच टीम की नजरों से इन तमाम खामियों को छुपाया नहीं जा सका।
पटना मेडिकल कालेज में बीस प्रतिषत षिक्षक कम हैं तो आपरेषन थियेटर का रखरखाव भी स्तरीय नहीं है। यहां मरीजों के साथ भी अच्छा वर्ताव नहीं होता। दरभंगा मेडिकल कालेज , नालंदा मेडिकल कालेज और जेएलएन मेडिकल कालेज भागलपुर की भी कमोबेष यही स्थिति है, जबकि एमसीआइ से बिहार सरकार ने इन काॅलेजों में सीटों की संख्या बढाने की मांग की है। उधर नये बने मधेपुरा , पावापुरी और बेतिया के मेडिकल कालेजों के पास अपना भवन तक नहीं है। ऐसे में इस सत्र में पढाई पर ग्रहण लग सकता है।
एमसीआई की जांच टीम की रिपोर्ट पर दस जून को फैसला होना है। दिल्ली में कार्यकारिणी समिति की होने वाली बैठक में इन कालेजों के बारे में निर्णय लिया जाएगा।
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