गुरू गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पांव
( गुरू पूर्णिमा पर विशेष )
गुरू जो हमारे जीवन को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। वह इंसान के रूप में देवता होता है। लेकिन जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए होता है। वैसी ही गुरू के लिए भी। गुरू के कृपा बिना कुछ भी संभव नहीं है। प्राचीन काल से भारत देश में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
प्राचीन काल में विद्यार्थी गुरू के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था। तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरू का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार दक्षिणा देता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। आज के दिन भारत के कई जगहों पर मेला लगता है और भक्तजन गंगा स्नान कर अपने गुरू का पूजन करते हैं। अगर किसी के गुरू उनके पास नही है तो वे मन में ही गुरू पूजा करने के लिए गुरू प्रतिमा को रखकर उनका आर्शीवाद लेते हैं। साधक के लिए गुरू पूर्णिमा व्रत और तपस्या का दिन है, इस साधक उपवास करता है। आज के दिन गुरू पूजा करने से साल भर पूर्णिमाओं के दिन किए हुए सत्कर्मो का फल मिलता है।
( गुरूब्रम्ह गुरूरविश्णुगुरूदेवो महेश्वरः
गुरूःसाक्षात परब्रम्ह,तस्म्ययै श्री गुरूवे नमः )
( गुरू पूर्णिमा पर विशेष )
गुरू जो हमारे जीवन को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। वह इंसान के रूप में देवता होता है। लेकिन जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए होता है। वैसी ही गुरू के लिए भी। गुरू के कृपा बिना कुछ भी संभव नहीं है। प्राचीन काल से भारत देश में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
प्राचीन काल में विद्यार्थी गुरू के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था। तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरू का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार दक्षिणा देता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। आज के दिन भारत के कई जगहों पर मेला लगता है और भक्तजन गंगा स्नान कर अपने गुरू का पूजन करते हैं। अगर किसी के गुरू उनके पास नही है तो वे मन में ही गुरू पूजा करने के लिए गुरू प्रतिमा को रखकर उनका आर्शीवाद लेते हैं। साधक के लिए गुरू पूर्णिमा व्रत और तपस्या का दिन है, इस साधक उपवास करता है। आज के दिन गुरू पूजा करने से साल भर पूर्णिमाओं के दिन किए हुए सत्कर्मो का फल मिलता है।
( गुरूब्रम्ह गुरूरविश्णुगुरूदेवो महेश्वरः
गुरूःसाक्षात परब्रम्ह,तस्म्ययै श्री गुरूवे नमः )
भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया। 19 पुराणों और उपपुराणों की रचना कर ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाज के लिए सहेजा। पंचम वेद महाभारत की रचना इसी पूर्णिमा के दिन ही पूरा की। सुप्रसिद्ध ग्रंथ ब्रम्हसूत्र लेखन का शुभारंभ भी इसी दिन किया। तब देवताओं ने वेदव्यास जी का पूजन किया। तभी से व्यास पूर्णिमा मनायी जा रही है, जिसे गुरू पूर्णिमा भी कहा जाता है।
हिन्दी महीने के आषाढ़ मास के पूर्णिमा को ही गुरू पूर्णिमा मनाया जाता है। इस दिन गुरू पूजा का विधान है। इस दिन गुरू पूर्णिमा मनाने के और भी कई वजह है। दरअसल गुरूपूर्णिमा वर्षा ऋतु आरंभ में आती है। इस दिन से चार महिने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि आज के दिन वेदव्यास जी का जन्म भी हुआ था।
आज कल के विद्यार्थी बड़े-बड़े प्रमाण पत्रों के पीछे भागते हैं। लेकिन पहले के विद्यार्थी संयम सदाचार का व्रत का नियम पालकर सालों साल गुरू के आश्रम में रहकर शिक्षा लेते थे। आज के विद्यार्थी अपनी पहचान बड़ी-बड़ी डिग्रीयों से देता है। जबकि पहले के विद्यार्थी में पहचान की महता वह किसका शिष्य है इससे होती थी।
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