गजल
जाने कहां तक पहुंचे,उजाले की चाह में
दिन में भी घुप्प अंधेरा है छाने लगा.
तिनका-तिनका चुगकर बसाया आसियां
अब तो उजाले से भी डर लगने लगा.
सबके चेहरे पर, मासूम मुस्कान है
कौन कातिल,कौन है सजा पाने लगा.
चांद पर जा पहुंचने की चाहत है मगर
उड़ान भरने से पहले,कुहरा है छाने लगा.
रोक लो उस आंधी को, जो दहला रही है
किसकी कारगुजारी,किसका दीप बुझने लगा.
       ------मुरली मनोहर श्रीवास्तव
         9430623520, 9234929710
 

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