लोकनायक जेपी तुम बहुत याद आए
(जेपी का जन्म कहां हुआ था.....एक सवाल)
बा मुद्दत बा मुलीहिजा होशियार, अपने घरों के दरवाजे बंद कर लो, बंद कर लो सारी खिड़कियां, दुबक जाओ कोने में, क्योंकी एक अस्सी साल का बुढ़ा अपनी कांपती लड़खड़ाती आवाज में , डगमगाते कदमों के साथ हिटलरी सरकार के खिलाफ निकल पड़ा है सड़कों पर ।
बा मुद्दत बा मुलीहिजा होशियार, अपने घरों के दरवाजे बंद कर लो, बंद कर लो सारी खिड़कियां, दुबक जाओ कोने में, क्योंकी एक अस्सी साल का बुढ़ा अपनी कांपती लड़खड़ाती आवाज में , डगमगाते कदमों के साथ हिटलरी सरकार के खिलाफ निकल पड़ा है सड़कों पर ।
एक सवाल हमेशा बना रहता है कि आखिर जेपी का जन्म कहां हुआ था.....इस पर कई मान्यताऐं हैं...उसी में बक्सर जिले के डुमरांव के नावानगर प्रखंड के सिकरौल लख पर जन्म हुआ था. यहां के लोगों की मानें तो जेपी के पिता जी हरसु लाल यहां नहर विभाग में जिलदार हुआ करते थे. और यहीं जेपी का जनम हुआ था.यही नहीं इनकी प्रारंभिक शिक्षा भी सिकरौल में ही हुई थी.....अगर यहां के लोग इस बात को कहते हैं तो यह जानने का विषय बन जाता है........
धर्मवीर भारती की ये रचना ऐसे हीं नहीं याद आई। ये याद आई है उस मौके पर जिस पर याद करने के लिए इसे लिखा गया होगा । अस्सी के दशक में इसे तब लिखा गया जब इन्दिरा गांधी का हिटलरी गुमान देश को एक और गुलामी की ओर ले जा रहा था, और बुढ़े जेपी ने उसके खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था। जी हां आज उसी जेपी की जयंती है। बिहार आंदोलन वाला जेपी, संपूर्ण क्रांती वाला जेपी, सरकार की चुलें हिला देने वाला जेपी, पुरे देश को आंदोलित करने वाला जेपी और सत्ता को धूल समझने वाला जेपी। जयप्रकाश नारायण। एक ऐसा नेता जिसने संपूर्ण आंदोलन की कल्पना की। संपूर्ण मतलब सामाजिक, राजनितिक, बौद्धिक, और सांस्कृतिक आंदोलन। 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के छपरा जिले के सिताब दियारा में जन्मे इस लोकनायक ने 1939 में दुसरे विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों का विरोध किया। 1943 में ये पकड़े गए। गांधी जी ने कहा जेपी छूटेंगे तभी फिरंगियों से कोइ बात होगी। 1946 में रिहा हुए। 1960 में इ नेता लोकनायक बन चुका था। इन्दिरा गांधी की नितियों की खुली आलोचना की हिम्मत थी इसमें। आंदोलन शुरु हो गया। अंग्रेजी हुकुमत की याद ताजा हो गई। अपने ही लाड़लों पर बर्बर लाठियां गिरने लगीं, गोलियों ने कइयों का सीना छलनी कर दिया। बुढ़े जेपी पीटे गए जेल गए। देश जेपी का हो गया । वो जिधर चले देश चल पड़ा। 1975 में घबराई सरकार ने देश को गुलाम बना डाला। आपातकाल की घोषणा हो गई। देश जल उठा और 1977 में हुए चुनाव में पहली बार लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से दुर कर दिया। इन्दिरा गांधी का गुमान टूट गया। उम्मीद थी जेपी सत्ता की बागडोर संभालेंगे, पर इ फक्कड़ संत सत्ता लेकर का करता। निकल पड़ा भुदान आंदोलन पर । देश सेवा , मानव सेवा और कुछ नहीं। आज उसी जेपी की जयंती है। नमन नमन और नमन, जेपी तूझे नमन।
जयप्रकाश जी रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे, चिताभष्म की चिनगारी से अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे ।
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