हिन्दी पर अंग्रेजी हावी
कुछ लोग हिन्दी की दुदर्षा पर हमेषा रोते रहते है । लेकिन ये पढंे लिखे लोग सम्मानित क्षेत्रों में कार्यरत होने के बावजूद भी हिन्दी या अपनी क्षंेत्रीय भाषा कें हिमायती है ।वास्तव में हिन्दी तो केवल उन लोगेा की कार्य भाषा है जिनकेा या तेा अग्रेजी आती नही है या फिर कुछ पढे लिखे लोग जिनकेा हिन्दी से कुछ ज्यादा ही मोह है और ऐसे लोगेा को सिरफिरे पिछडें या बेवकूफ की संबा से सम्मानित कर दिया जाता है । सच तो यह हैं कि ज्यादातार भारतीय अंगंे्रजी के मोहपाष में बुरी तरह से जकड्रंे हुए है आज स्वाधीन भारत में अंग्रजी में निजी व्यवहार बढता जा रहा है काफी कुछ सरकारी व पूरा गैर सरकारी काम अंग्रेजी में ही होता है । दंुकानों के बोर्ड , होटलो रेस्टूरेन्टो के मेनू , अ्रगंेजी , मंें ही होता है । ज्यादातार नियम कानून या अन्य काम की बाते किताबे इत्यादि अंगंेजी मेे होने लगे हंै । उपकरणांे या यंत्रो को प्रयोग करने की विधि अंगंेजो मेे लिखी होती है भले ही इसका प्रयेाग किसी अंगेजी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को ही क्येा नही करना हो । अंगेजी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह हावी हो गई है हिन्दी या कोई और भारतीर भाषा के नाम पर छलावें या ढोग के सिवा कुछ नही होता है ।
हमारे ष्यहा बडे बडे नेता अधिकारीगण व्यापारी हिन्दी के नाम पर लबे चैडे भाषण देते है कितु अपने बच्चांे को अंगेजी माध्यम स्कूलों में पढाएॅगे । उन स्कूलों को बढावा दंेगे । अंगंेजी मे बात करना या बीच बीच में अंगेजी के ष्षब्दो का प्रयोग ष्षान का प्रतीक समझेगे ।
कुछ लोगो का कहना है कि ष्षु़द्ध हिन्दी बोलना कठिन है सरल तो केवल अंग्रेजी बोली जाती है अंगे्रजी जितना कठिन होती जाती है उतनी ही खूबसूरत होती होती जाती है आदमी उतना ही जागृत व पढा लिखा होता जाता है । ष्आज के समय के लोगेा का मानना हंै कि ष्षुद्ध हिन्दी तो केवल पांेगा पडित या बेंवकूफ लोग बोलते है । आधुनिकरण के इस दैार में या वैष्विकरण के नाम पर जितनी अनदंेखी और दुर्गति हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओ की हुई है उतनी ष्षयद ही कही भी किसी और दंेष की भाषा की हुई है ।
आज अंगे्रजी इतनी हावी हो चूकि है की स्कूलो से सुबह का प्रार्थना गायब हो चूका है उसके जगह पर ऐसबली ने उसका रूप ले लिया है इसका मतलब यह नही कि भावी पीढी केा अंग्रेजी से वचित रखा जाए , अग्रेजी पढे सीखे परतु साथ साथ यह आवष्कता है कि अंगेजी को उतना ही सम्मान दे जितना कि जरूरी है इसकेा हमारे दिमाग पर राज करने से रोके और इसमे सबसे बडे यांेगदान की जरूरत समाज के पढे लिखे लोगो से है । अब हमे सुधर जाना चाहिए वरना समय बीतने के बाद हम लोगो को खुद कोसने के बजाय कुछ नही बचेगा । इसलिए केवल एक खानापूर्ति कर लेना ही ठीक नही है र्बिल्क हिन्दी दिवस के दिन यह ष्षपथ लेने की जरूरत है हिन्दी को और आगे लाने की इतने आगे लाने की ताकि अंग्रेजी की भूत इसको छू ना सके ।
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