Tuesday, February 12, 2013


भटकती पत्रकारिता
ईश्वर ने गांव को बनाया , मनुष्य ने शहर बनाया । गांव मे खेत है, खलिहान है, नदी है, तालाब है, बाग- बगीचा है, पक्षियों का कलरव है, रंभाती गाये है, वहां प्रकृति बसती है, भारत माता गांव मे ही रहती है । बापू जी ने भी कहा था । भारत की आस्था गांव में रहती है । सुमित्रा नंदन पंत ने कहा - मरकत डिब्बे सा खुला गा्रम। शहर बढते गये गाॅंव लुटता चला गया । गाॅवों मे भी अब शहरो की नकल होने लगी है । शहर गांव का शोषण करने लगा ।
गाॅवो के देश भारत में , जहा लगभग 80 प्रतिशत अबादी गा्रमीण इलाकों में रहती है, बापू ने भी कहा था की देश का विकास तभी संभव है जब गाॅव का विकास संभव । इसी को ध्यान में रखते ंहुए पंचायती राज का गंठन किया । इतना ही गाॅव का विकास उतना नही हो सका जितना होना चाहिए । इसका दोषी कौन है। न्यायपालिका ,कार्यपालिका ,विधायिका , या अपने को पढा लिखा और विद्वान मानने वाली मिडिया। प्रजातात्रिक देश के इन चार स्तभों में आखिर दोषी कौन ? टी वी पर आकर चिल्लाने वाले टी वी पत्रकार ब्र्रेकिग दिखाने की होड में अपने कर्तव्य को भूलने वाली इलेक्टोनिक मिडिया या मुखपृष्ठ पर अपने मिशन को भूल कर केवल अपराध , डकैती और बलात्कार को छापने वाली पिं्रट मिडिया । लोकतंत्र के चार स्तभों में चैथा और आखिरी स्तंभ मिडिया का काम है बाकी तीन स्तभों में आये भटकाव को रोकना उनका मार्गदर्शन कराना । लेकिन जब चैथा स्तभ ही कमजोर और व्यापारी बन जाऐ तो बाकी तीन बेलागाम हो जाते है । अगर गांव पिछडा हुआ है तो इसका सबसे ज्यादा दोषी आज का मिडिया है । जनता की आवाज मिडिया में भटकाव आ गया है वह अपना कतव्य भूल कर टीआरपी और सर्कुलंेशन बढाने मंें लगे हुए है किन खबरों को समाचार पत्र या खबरिया चैनल मंें प्राथिमकता देनी चाहिए यह बात खत्म हो चूकी है । मिडिया पर बाजार हावी हो चुका है चाहे वह क्षेत्रीय या राष्टीय स्तर के समाचार चैनल या समाचार पत्र सबपर बाजार वाद दिखाई दे रहा है । पहले पत्रकारिता मिशन थी, अब प्रोफेशन हो गई । इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में क्राति आने के बाद प्रसन्नता होती है । जब छोटी - छोटी खबरें भी इलेक्ट्राॅनिक चैनल्स पर आती है । लेकिन जिस प्रकार , विलेज जर्नलिज्म को उभर कर आना चाहिये ,नही आया है राजधानी और बडे शहरों की पत्रकारिता का स्तर बडंे - बडें राजनीतिज्ञांे और सता के गलियारंे में बैठे नौकरशाहों के संबधो , फिल्मी कलाकारो नीजी जीवन के आधार पर मापा जाता है । गाॅव की समस्याओं की समस्याआंे को सुलझाने में समाचार पत्र कोई दिलचस्पी नही दिखा रहा है गा्रमीण क्षेत्रों की खबरें समाचार माध्यमों में तभी स्थान पाती है जब किसी बडी प्राकृतिक आपदा या व्यापक हिंसा के कारण बहुत लोगों की जाने चली जाती है । ऐसे में कुछ दिनों के लिए राष्टीय कहे जाने वाले समाचार पत्रांें और मीडिया जगत की मानेा नीदं खुलती है और उन्हे गा्रमीण जनता की सुध आती जान पडती है।खासकर बडंें राजनेताओं के दौरे की कवरेज के दौरान ही गा्रमीण क्षेत्रों की खबरों को प्रमुखता से स्थान मिल पाता है । फिर मामला पहले की तरह ठंडा पड जाता है और किसी को यह सुनिश्चित करने की जरूरत नही होती कि गा्रमीण जनता की समस्याओं को स्थायी रूप से दूर करने और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए किए गए वायदांें को कब कैसे और कौन पूरा करेगा । और गाॅधी के सपनो गाॅवो का भारत कब विकास करेगा । और यह काम कौन पूरा करेगा । यह एक यक्ष प्रशन है । ।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....