बक्सर
जेल में बना फंदा पर झुला अफजल
आखिरकर
बिहार के बक्सर सेंट्रल जेल
में बना फांसी का फंदा पर अफजल
गुरू
को
लटका दिया गया ...
सुत्रों
से मिली जानकारी के मुताबिक
आज से पांच साल
पहले
अफजल गुरू के लिये बक्सर के
सेट्रल जेल में मनीला
रस्सी
से फांसी का फंदा उसके बजन और
लम्बाई को देखते हुऐ वहां के
कैदियों
के
द्वारा बनाया गया था ..
दरअसल
उस वक्त तिहार जेल के डिप्टी
सुप्रिटेंडट
फंदें
का रिक्यूजिशन लेकर बिहार
आये थे जिसके बाद बक्सर जेल
में इसका
निर्माण
किया गया था और फिर उसे लेकर
वो तिहार के लिये रवाना हो गये
थे ..
आधिकारियो
से मिली जानारी के मुताबिक देश
में मात्र
एक जगह मौत का फंदा तैयार होता
है। वो जगह कहीं और नहीं बिहार
का केन्द्रीय
कारा बक्सर है। जी हां यह सच
है। इस जेल में बन्द कैदी ही
अपने साथियों
की मौत का फंदा तैयार करते है।
इस विशेष रस्सी का नाम मनीला
रस्सी है।
वर्ष 1844 ई. में अंग्रेज शासकों द्वारा केन्द्रीय कारा बक्सर में मौत का फंदा तैयार करने की फैक्ट्री लगाई गई थी। बक्सर केन्द्रीय कारा में तैयार मौत के फंदे से पहली बार सन् 1884 ई. में एक भारतीय नागरिक को फांसी पर लटकाया गया था। वर्तमान समय में देश में जब-जब मौत का फरमान जारी होता है तब-तब केन्द्रीय कारा बक्सर के कैदी ही मौत का फंदा तैयार करते है।
अबतक तैयार रस्सी का इतिहास
जेल
सूत्रों
से प्राप्त जानकारी के अनुसार
जेल स्टाफ आनंद शर्मा व शशि
कुमार
के
नेतृत्व में छ:
सजायाफ्ता
कैदी फांसी देने वाली विशेष
प्रकार की मनीला
रस्सी
का निर्माण करते हैं। राज्य
सरकारों की विशेष मांग पर अबतक
सन् 1995
ई.
में
केन्द्रीय कारा भागलपुर,
1981 में
महाराष्ट्र,
1990 में
पश्चिम
बंगाल,
2003 में
आंध्रप्रदेश और 2004
में
पश्चिम बंगाल को आपूर्ति किया
गया।
मौत के फंदे का दाम मात्र 182 रूपये
168 किलोग्राम वजन उठाने की क्षमता वाली विशेष प्रकार की रस्सी की कीमत मात्र 182 रूपये है। इस कीमत में बढ़ोतरी अजादी के बाद से नहीं की गई है। अंग्रेजों के जमाने में रूई सुता से इस रस्सी का निर्माण किया जाता था। मनीला रस्सी का निर्माण आज भी पंजाब में उत्पादित होने वाली जे-34 गुणवक्ता वाली रूई के सुतों से किया जाता है जो विशेष आर्दता में तैयार 50 धागों से बना होता है। जिसका वजन 3 किलो 950 ग्राम होने के साथ 60 फीट लम्बा होता है।
मौत के फंदे का दाम मात्र 182 रूपये
168 किलोग्राम वजन उठाने की क्षमता वाली विशेष प्रकार की रस्सी की कीमत मात्र 182 रूपये है। इस कीमत में बढ़ोतरी अजादी के बाद से नहीं की गई है। अंग्रेजों के जमाने में रूई सुता से इस रस्सी का निर्माण किया जाता था। मनीला रस्सी का निर्माण आज भी पंजाब में उत्पादित होने वाली जे-34 गुणवक्ता वाली रूई के सुतों से किया जाता है जो विशेष आर्दता में तैयार 50 धागों से बना होता है। जिसका वजन 3 किलो 950 ग्राम होने के साथ 60 फीट लम्बा होता है।
बक्सर
के अलावा मनीला रस्सी तैयार
करने पर देश में पूर्ण
प्रतिबंध
उधोग मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय कारा को छोड़ कर भारतीय फैक्ट्री लॉ में इस क्वालिटी की रस्सी के निर्माण पर पूरे देश में पूर्ण प्रतिबंध है। वहीं वरीय प्रशासनिक अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार केवल सरकारी आदेश को छोड़ कर इस विशेष प्रकार के रस्सी के उपयोग पर पूरे देश में पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।
उधोग मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय कारा को छोड़ कर भारतीय फैक्ट्री लॉ में इस क्वालिटी की रस्सी के निर्माण पर पूरे देश में पूर्ण प्रतिबंध है। वहीं वरीय प्रशासनिक अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार केवल सरकारी आदेश को छोड़ कर इस विशेष प्रकार के रस्सी के उपयोग पर पूरे देश में पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।
मनीला नाम कैसे पड़ा...
जेल के अधिकारी के मुताबिक
ब्रिटिश हुकूमत में पहले फिलीपीन की राजधानी मनीला में फांसी के लिए रस्सी
तैयार होती थी। बाद में बक्सर जेल में भी वैसी ही रस्सी का निर्माण होने
लगा। अंग्रेजों ने ही इसे मनीला रस्सी नाम दिया।
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