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लुप्ति के कगा विलुप्त होती हस्तकलाएं हस्तकलाएं
झारखंड एक संपन्न प्रांत है. यहां कला,कौशल और मेहनती लोगों की कमी नहीं. यहां के लोग अपनी मेहनत के बूते आए दिन एक नई इबारत लिखते हैं. लेकिन वक्त के साथ पुराने किस्से-कहानियों की तरह होती जा रही है यहां कि हस्त कलाएं.
झारखंड की कई ऐसी हस्त कला है
जो अब बिलुप्त होने के कगार
पर है।....इन्ही
में से एक है खजूर की टहनियों
पर की गयी कारीगरी।....लेकिन
बदलते दौर में यह कलाकृति और
इन्हे बनाने वाले कारीगर दोनो
दम तोड़ रहे है।
एक
समय था जब हमारा भारत अपने
कलाकृतियो के लिए जाना जाता
था।....
इन्ही
कलाकृतियो में से एक था खजूरो
कि टहनियो से बननें वाले सामान,
जो
की अब यदा कदा ही देखने को मिलता
है।....काम
के अनुसार सही मेहनताना नही
मिलने के कारण और
साल में केवल 6
महिने
ही उपयोग होने के कारण इससे
जुड़े कारीगर अब यह कारीगरी
छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।....
बदलते
समय के साथ साथ लोगो का नजरिया
भी बदलता जा रहा है.लोग
पेड़ के टहनियो से बनने वाले
सामानो की जगह प्लास्टिक से
बने सामानो को ज्यादा तवज्जो
देने लगे है, ज्यादातर
खरीदारो का भी मानना है कि
आधुनिकता के इस दौर में चीजो
का खुबसुरत होना ज्यादा जरूरी
है.
जरूरत
है बिलुप्त होती इस हस्त कला
को सपकारी संरक्षन मिलने की,
ताकि
इस हस्त कला के कारीगर और उनकी
कला दोनो को बचाया जा सके....नहीं
तो यह कारीगर और इनकी कलाकृतियां
इतिहास के पन्नो में ही सिमट
कर रह जाएगी।
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