हिन्दी ग्रन्थ
अकादमी
पूरे
विश्वविद्यालयों में हिन्दी
को बढ़ावा दिया जा सके और उसके
लिए हिन्दी में पुस्तकें सुलभ
हो इस उद्देश्य के साथ देश के
सभी राज्य़ो में 1970
के आसपास हिन्दी
ग्रन्थ अकादमी का गठन किया
गया..बिहार
भी उनमें से एक है..लेकिन
41
साल के बाद हिन्दी
की स्थिति को दर्शाने वाला
ग्रन्थ अकादमी अपनी पूरी कहानी
बयां कर रहा है
एक करोड़
चालिस लाख पुस्तकों वाला
पुस्तकालय का मालिक है बिहार
हिन्दी ग्रन्थ अकादमी..और
अकादमियों की अपेक्षा इसकी
स्थिति थोड़ी अच्छी है...यहां
के कर्मचारियों को पंचम वेतन
आयोग के आधार पर भुगतान होता
है...इसके
पास अपना भवन है..और
किताबे बिकती हैं..कुछ
आमदनी भी होती है..लेकिन
फिर भी शिकायत बनी हुई है
अकादमी की
स्थिति अन्य जगहों के अपेक्षा
ज्यादा अच्छी है..लेकिन
अपने शुरूआती दिनों में तीन
लाख अस्सी हजार का राजकीय
अनुदान पाने वाला ये अकादमी
आज 80
लाख सालाना अनुदान
पाता है..पर
खर्च तकरीबन एक करोड़ 37
लाख के आसपास है
अपने स्थापना
काल से इस अकादमी ने अब तक 375
टाइटिक की किताबों
को प्रकाशित कर चुका है...उद्देश्य
है हिन्दी को छात्रों के बीच
सुलभ करना...लेकिन
बदलते पढ़ाई के विषयवस्तु ने
हिन्दी को जब पीछे की ओर धकेलना
शुरू किया..तो
अकादमी का कहना है कि सरकार
अब इसे अपने अंदर सीधे तौर पर
लेले...देश
के सभी राज्य ऐसा कर चुके हैं
धीरेंद्र की रिपोर्ट
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