किससे कहें ?
--मुरली मनोहर श्रीवास्तव
हमने क्या बिगाड़ा
जो मेरी तकदीर में
तूने आंसू लिख दिया.
लोग
हाड़ कंपाती ठंढ़ में
खुद को कपड़ों में छुपा लेते हैं
हम चाहकर भी
जमीनी हकीकत से
खुद को दूर नहीं कर पाते हैं
क्यों दिया तूने ऐसी जिंदगी
जो हर पल संघर्ष से जुझती है
न कोई देखने वाला
न कोई समझने वाला
मिलते हैं
दिलाषा के घूंट पिलाने वाला
हमारी उम्मीद
कब तलक
दिल में दफन होता रहेगा,
किसी को
कामयाबी गर मिल गई
तो वाहवाही के पुल बंध जाते है.
सोचता हूं
हमें क्या मिला,
कैसी हमारी जिंदगी
जमाना तो दूर
अपनों के काम न आ सके
सांसारिक रस्मों से
दूर रहकर
हमारी चाहत
ठीठुरती ठंढ़ के साथ
जाने कब सिमटकर
एक दिन चुपके से
आखिरी सफर पर निकल जाता है.....
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देख लो
दुनिया वालों
हमें भी जीना आता है
पांव न सही
हाथों के बल
जिंदगी काटना आता है
लग जाते अगर पंख
तो मैं भी उड़ लेता
पांव की जगह हाथों से
जिंदगी की इबारत लिख देता
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