नारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर......
नारी त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। इनकी अपने आप में एक मिशाल है। वैसे सृष्टि के आरंभकाल से हीं नारी अनंत गुणों की आगार रही है। इनके सहने की क्षमता के लिए इन्हें पृथ्वी, सूर्य जैसा तेज, चंद्रमा की तरह शीतलता पहाड़ों सी उची मानसिकता, संमुद्र की तरह गंभीरता तो ममता, दया करूणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति तेरे अंदर देखने को मिलती है। तो कभी-कभार प्रचंड रूप भी दिखते है।
पुरूषों के समान अधिकार के लिए महिलाओं के आंदोलन ने विश्व स्तर पर कई करवटें बदली। उसी में 08 मार्च 1908 में ब्रिटेन में महिलाओं ने रोटी और गुलाब के नारे के साथ अपने अधिकारों के प्रति सजगता दिखाते हुए प्रदर्शन किया था। इसके माध्यम से इन्होंने रोटी को जहां आर्थिक शैली सुरक्षा बताया तो गुलाब को अच्छी जीवन शैली को दर्शाया था।
अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
आज की नारी को भले हीं आजादी मिल गई हो लेकिन इस आजादी के लिए कितनों को संर्घष करनी पड़ी है ये महसूस करने की बात है। तभी तो महिला संगठन को सामाजिक मान्यता एवं सहयोग 1911 में प्रथम अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, एवं स्वीटजरलैण्ड में आयोजित किया गया। वैसे प्रथम अंर्तराष्ट्रीय महिला वर्ष मैक्सिको में हुआ था। जबकि चतुर्थ अंर्तराष्ट्रीय महिला वर्ष पर बीजींग में विश्व के 189 देशों ने भाग लिया।
भारत में इसका शुभारंभ करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 16 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस पर कहा था-ऐसा कोई काम नहीं जिसे महिलाऐं पुरूषों के साथ कंधे से कधा मिलाकर नहीं कर सकती । पहले से महिलाओं की आर्थिक, समाजिक और राजनैतिक हिस्सेदारी बढ़ी है। इतना हीं नहीं पुरूषों ने एकाधिपत्य को तोड़कर अपनी भागीदारी को दर्शाया है। विश्व में महिलाओं का शोषण सांसकृतिक और समाजिक स्तर पर है। लेकिन समाजिक स्तर पर कुछ ज्यादा हीं है। एक ऐसा समाज भी है जहां रूढ़िवादी नेतृत्व धर्म के नाम पर भी महिलाओं के अधिकार का हनन होता हीं रहा है। नारी के इतना कुद करने का मतलब समाज का विकास हुआ है तो इनके हीं गलतीयों का खामियाजा भी इन्हीं को भुगतना पड़ा है। आइये वैसे में अपनी स्मिता को बचाए रखने के लिए अपनी जमीन को तलाशें। जिससे आपकी मर्यादा और ममता की धरोहर बनकर आपके किसी रूप का माखौल ना बने।
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