Wednesday, January 30, 2013


                   बेटी होना गुनाह है ?


क्या किया हमने गुनाह, हमें वक्त-बेवक्त दोजख जमीं देते हो
कभी मां की कोख में, कभी उम्र के बालपन में कत्ल कर देते हो
कौन सी कमी है मुझ में, ये कैसी, किसकी बददुआ है
कैसी वफा है मां, देकर जनम हमें, गहरी नींद सुला देते हो
क्यों नहीं आती दया तनिक भी तुम्हें, मेरी मासूमियत पर
अपनी खुशी, या जहां की खुशी के लिए,पल में मसल देती हो
कभी मेरी ओर देखो, मुझे मां, बहन, बेटी, ममता नजर आएगी
फिर एक बेटी होने का क्यूं दंभी, एहसास दिला जाते हो
न खिल सके, न अपनी दुनिया में जी सके,ममता की मूरत भी न बन सके
लोक-लज्जा से या फिर अपनी बोझ समझ, मां-पापा मेरी वजूद मिटा देते हो.
कौन कहता है कोई और है तस्कर, मेरी नजर में तुम खुद एक आरोपी हो
अपनी खुशी की चाह में, मेरे कत्ल का इल्जाम गैरों पर लगा देते हो.


---मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....