आखिर कब सुलझेगी गुत्थी
(35 साल बाद भी L.N.MISHRA हत्याकांड की नहीं सुलझी गुत्थी)
हत्याओं की गुत्थी का नहीं सुलझना भारतीय इतिहास में कोई नई बात नहीं...इन्हीं कड़ियों में एक बड़ी घटना की ओर आपका ध्यान खिंचना चाहता हूं....वो है तत्कालिन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा हत्या कांड की तरफ....जी हां इस हत्याकांड की
गुत्थी हाई प्रोफ़ाइल मामला होने के बाद भी आज तक नहीं सुलझ पायी है....देश
के रेल मंत्री रह्ते हुए एक बम कांड मे अपनी जान गंवा चुके ललित नारायाण
मिश्रा की हत्या के 36साल होने को है लेकिन अब तक इस हत्याकांड पर से पर्दा
नही उठ पाया है, जबकि इस बीच कई गवाह, जज और जांच अधिकारी भी इस दुनिया को अलविदा कह गए.....
02 जनवरी को सर्द भरी शाम मे जब समस्तीपुर के रेलवे स्टेशन पर
तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायाण मिश्रा समस्तीपुर- मुजफ़्फ़रपुर रेल खंड
का उदघाटन कर रहे थे तभी कुछ अज्ञात लोगो ने बम से हमला कर उन्हें मौत की नींद सुला दिया......
बम लगने के बाद रेल मंत्री को समस्तीपुर से इलाज के लिए
नजदीक होने के बावजुद दरभंगा, मुजफ़्फ़रपुर के बजाय रेल मार्ग से पटना लाया
गया, वो भी पटना के बजाय दानापुर के रेलवे अस्पताल मे भर्ती
कराया गया, लेकिन इस बीच इलाज में देरी होने से ललित नारायाण मिश्रा की
मौत हो गई....रेल मंत्री के साथ ऐसी घटना घटती है और रेल से समस्तीपुर से
पटना लाने मे 12 घंटे लग गए, जबकि समस्तीपुर से पटना की दूरी मात्र चार
घंटे की है..अब सवाल यह उठता है कि आखिर वो कौन सी वजह थी जिससे
ललित नारायाण मिश्रा के इलाज मे इस तरह की कोताही बरती गई.... जिस वक्त ये
घटना हुई थी उस वक्त उनके साथ मंच पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और कई दफ़ा
बिहार सरकार मे मंत्री रह चुके दिलेश्वर राम को भी बम हमला मे गंभीर चोट
आयी थी, जिसमें वो बूरी तरह से घायल हो गए थे, ये भी आज भी इस घटना को याद
कर सिहर उठते हैं....इस बात पर नाराजगी भी जताते है की आखिर क्यूं आज तक
हत्या एक राज बना हुआ है.....
ललित नारायाण मिश्रा के हत्या के ऐसे कई पहलु है जिसे आज तक
बिहार पुलिस से अपने हाथ में केस लेकर इस हत्याकांड पर से पर्दा उठाने के
लिए 35 सालो से प्रयास कर रही सीबीआई को भी समझ में नही आ रहा है की आखिर
वो कौन लोग थे जिन्होने ललित नारायाण मिश्रा की हत्या की...इसके पीछे
उनका क्या मकसद था॥ ललित नारायाण मिश्रा के छोटे भाई और तत्कालिन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा भी इस बम कांड मे घायल होने वालो में
से एक थे....... इस कांड मे ललित बाबू की तो मौत हो गई... लेकिन जगनाथ मिश्रा भी
गंभीर रुप से घायल हो गए थे... बम उनके शरीर में जाकर लगी थी जिसका
जख्म आज भी दिखता है, जिसे दिखाते हुए जगनाथ मिश्रा सिहर जाते हैं.. और लगे
हाथो इस हत्याकांड मे तत्कालिन सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप भी लगाते
है.....कहते है की आखिर ललित बाबू को बम लगने के बाद भी उनके इलाज मे
इतनी देरी क्यूं हुई...उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर अब्दुल गफ़ुर
विराजमान थे।
जाहिर है जगन्नाथ मिश्रा की बातो से ये साफ़ है की ललित बाबू की
हत्या बहुत ही सोची समझी साजिश के तहत किया गया था। और जिस तरह से इस
घटना के बाद एक के बाद एक कई लैप्स होते गए उससे ये बात भी उठती है की
आखिर वो कौन लोग थे जिन्हें इस हत्या से फ़ायदा उठ सकता था.... वरिष्ठ कांग्रेसी
नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके चन्द्र शेखर वाबू की पत्नी
और सांसद रह चुकी मनोरमा सिंह भी इस हत्या कांड के बारे मे बताते हुए
अफसोस जाहिर करती हैं....
ये तो थी राजनीतिक लोगों की राय.... इस हत्याकांड से गहरे रुप से जुडे दो महत्वपूर्ण शख्श जिसने इस घटना को काफ़ी
नजदीक से देखा है और इस कांड के एक एक पहलु की जांच की...जिस वक्त ये घटना
हुई थी उस वक्त समस्तीपुर के एसपी थे डी पी ओझा जो बिहार के डीजीपी के
पद से रिटायर हुए थे, ओझा जी इस केस के गवाह भी है.... इन्हे आज भी वो घटना
याद है जब समस्तीपुर मे ललित बाबू की हत्या हुई थी... इस घटना के बाद पुलिस
के भूमिका पर भी सवाल खडा किया गया था, लेकिन इससे उलट डी पी ओझा इस
हत्या कांड के बाद जांच मे जुटे और तथ्य जुटाने लगे तभी इस जांच को
सीआईडी को सौप दिया गया... और वे सीआईडी की मदद से जांच भी करना शुरु कर
दिये, यही नहीं 2010 में ही इस केस के सिलसिले मे ओझा जी ने तीस हजारी
कोर्ट मे गवाही भी दी है....लेकिन मामला काफ़ी हाई प्रोफ़ाईल थी.... समय
के नजाकत को देखते हुए इस केस को सीबीआइ को सौप दिया गया... इस बीच जब
उनसे ये पुछा गया की इस मामले मे इंटेलिजेंस फ़ेलियर की बात कही जाती है
तो वे इस आरोप को गलत बताते हैं.....
इस केस की अहमियत देखते हुए केन्द्र सरकार से लेके राज्य
सरकार के होश उडे हुए थे और हर कोई चाहता था की जल्द से जल्द इस हत्या
कांड से पर्दा उठे।लेकिन इस केस को जब सीआईडी के हाथो मे दिया गया तब
डीआइज़ी सीआईडी थे शशी भूषण सहाय जो इस केस के सबसे महत्वपूर्ण शख्स है जो
आज जिंदा बचे हुए है लेकिन उम्र की आखरी दहलीज पर है... शशी भूषण सहाय इस
केस को अपने हाथों मे मिलने के बाद एक एक बातो को काफ़ी बारीकी से जांच की
और कई महत्वपुर्ण तथ्य जुटाए । यही नहीं जब इनसे इस केस को सीबीआइ ने अपने
हाथो मे लिया और इन्होने जब सीबीआइ को इस केस के बारे मे महत्वपूर्ण
जानकारी दी तब सीबीआइ की जांच की धुरी ही बदल गई....
इस मामले में शशी भूषण सहाय के आरोप से कई बातें सामने आती हैं...सीबीआई ने अपनी जांच मे शक की सुई आनन्दमार्गीयों पर लगाया था और कुछ लोगो
को गिरफ़्तार भी किया गया जिनपर आज तक मामला चल रहा है.... लेकिन जब शशी भूषण
सहाय ने अपनी जांच की और एक गुप्त रिपोर्ट सीबीआई को सौपी तो उस रिपोर्ट
मे आनन्दमार्गियों को निर्दोष बताया गया और शक की सुई ललित नारायाण मिश्रा
की पत्नि और उनके कुछ नजदीकी लोगों के आरोप के बाद और अपनी जांच रिपोर्ट
मे ललित बाबू के नजदिकियों पर शक जाहिर की लेकिन बावजूद इसके सीबीआइ ने
इस तथ्य पर आंख बंद रखी...
पिछले दिसंबर में इनकी गवाही थी लेकिन तबियत बिगडने की वजह
से वो कोर्ट मे नही जा पाए, लेकिन इस साल 2011 मार्च मे उन्हे कोर्ट मे पेश
होना है जिसमे इनका कहना है की वो तमाम बातो को कोर्ट के सामने
रखेंगे.........लेकिन उन्हे भी इस बात को लेके मलाल है की इस केस को आखिर किन वजह
से solve नहीं किया जा रहा है....आखिर कब सच सामने आएगा ललित नारायान मिश्रा के मौत
का रहस्य...आखिर कौन सी आसी बात है...कहीं किसी राजनेता का नाम दागदार होगा..या फिर अपनों का ये तो मौत के 35 वर्षों बाद भी एक रहस्य बना हुआ है.......
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