चलते रहो तब तक
जब तक मंजिल न मिल जाए,
आंखों में बसी उम्मीद को
ख्वाबों को आयाम न मिल जाए.
सोचते हैं सब, पर आप
उन सपनों को साकार करो,
राहें थोड़ी मुश्किल हो,तो घबराना मत
मंजिल मिलेगी एक दिन
किसी से दर्द का,
भूले से भी इजहार न करो.
ले लो आप भी एक शपथ
सच्चे दिल से करेंगे मेहनत,
आएगा वो दिन भी
एक दिन होंगे हम शिखर पर,
गुजारिश बस इतना ही करेंगे
अपनी ईमानदारी-कर्म से प्यार करो.
मालूम नहीं कल यहां हो न हो
ये जिंदगी जाने फिर कब नसीब हो
इसीलिए तो सबसे कहते हैं
आओ दुनिया में एक नई इबारत गढ़ जाएं.
चलते रहो तब तक,
जब तक मंजिल न मिल जाए.
......................मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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